जकड़े हुए हैं बेड़ियों में आज भी,
ऊँच-नीच, धर्म और जात-पात की।
भेड़ की खाल में जब देखता हूं भेड़िये,
बापू याद मुझे सताती है आपकी।।
इस अंधकार में फिर से कर दो उजाले,
कि कोई फिरंगी नज़र हम पर न डाले।
आकर हमे फिर से आज़ाद कराओ ना,
लौट आओ ना, बापू सत्य-अहिंसा वाले।।
ऊँच-नीच, धर्म और जात-पात की।
भेड़ की खाल में जब देखता हूं भेड़िये,
बापू याद मुझे सताती है आपकी।।
इस अंधकार में फिर से कर दो उजाले,
कि कोई फिरंगी नज़र हम पर न डाले।
आकर हमे फिर से आज़ाद कराओ ना,
लौट आओ ना, बापू सत्य-अहिंसा वाले।।
Comments
Post a Comment